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Determination of Least Cost Duration in Hindi

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Determination of Least Cost Duration in Hindi

यह विषय प्रोजेक्ट प्रबंधन और योजना निर्माण में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जिसका उद्देश्य किसी कार्य या प्रोजेक्ट के लिए सबसे कम लागत वाली अवधि निर्धारित करना है। जब हम प्रोजेक्ट की अवधि को कम करने का प्रयास करते हैं, तो लागत और समय का संतुलन बनाने के लिए यह प्रक्रिया मददगार होती है। इसके माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि कैसे समय को नियंत्रित करते हुए कम से कम लागत पर कार्य को पूरा किया जा सकता है।

Determination of Least Cost Duration in Hindi

प्रोजेक्ट प्रबंधन के क्षेत्र में सबसे कम लागत अवधि का निर्धारण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। जब हम किसी प्रोजेक्ट की समय-सीमा को कम करना चाहते हैं, तो इसके साथ लागत का भी ध्यान रखना पड़ता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह है कि हम समय और खर्च दोनों को इष्टतम तरीके से मैनेज करें, ताकि कार्य को जल्दी और कम खर्च में पूरा किया जा सके। यह विषय विशेष रूप से प्रोजेक्ट की योजना बनाने में सहायक होता है।

Concept of Least Cost Duration in Hindi

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन (Least Cost Duration) का मतलब है कि किसी प्रोजेक्ट को समाप्त करने के लिए न्यूनतम लागत वाली समय सीमा का निर्धारण। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि काम को सबसे कम लागत में और निर्धारित समय के भीतर पूरा किया जाए। जब हम कार्य की समय सीमा को घटाते हैं तो यह अधिक संसाधनों की आवश्यकता कर सकता है, जिससे लागत में वृद्धि होती है। इसके बावजूद, इस अवधारणा में यह देखा जाता है कि कौन सा समय अंतराल सबसे प्रभावी होगा, जिससे लागत भी कम हो और समय भी प्रबंधनीय रहे।

Steps in Determining Least Cost Duration in Hindi

  • समय और लागत का विश्लेषण करना: सबसे पहले, हमें प्रोजेक्ट के प्रत्येक कार्य की समय सीमा और लागत का विश्लेषण करना होता है। इसमें यह देखा जाता है कि कौन से कार्य अधिक समय और अधिक खर्च कर रहे हैं।
  • क्रिटिकल पाथ निर्धारण: इसके बाद, क्रिटिकल पाथ (Critical Path) को निर्धारित करना जरूरी होता है, क्योंकि इसी पथ पर कार्यों का निष्पादन समय पर करना जरूरी होता है।
  • श्रम और संसाधनों का वितरण: सबसे कम लागत में प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए श्रम और संसाधनों का सही वितरण किया जाता है। इसके तहत संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाता है।
  • समय में लचीलापन सुनिश्चित करना: प्रोजेक्ट में कुछ समय में लचीलापन होता है, जिसका फायदा उठाते हुए कार्यों को सही समय पर पूरा करने के लिए योजना बनाई जाती है।

Advantages of Determining Least Cost Duration in Hindi

  • लागत में कमी: लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन के निर्धारण से प्रोजेक्ट की कुल लागत में कमी आती है। यह सुनिश्चित करता है कि प्रोजेक्ट को कम खर्च में पूरा किया जा सके।
  • समय का बेहतर प्रबंधन: जब हम लागत को ध्यान में रखते हुए समय को नियंत्रित करते हैं, तो इससे प्रोजेक्ट की समय-सीमा भी बेहतर ढंग से प्रबंधित होती है।
  • संसाधनों का सही उपयोग: इस प्रक्रिया के तहत संसाधनों का कुशल उपयोग होता है, जिससे कार्य तेजी से और कम लागत में हो पाता है।

Calculating the Least Cost Duration in Hindi

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन की गणना करने के लिए, सबसे पहले प्रोजेक्ट के प्रत्येक कार्य की लागत और समय को समझना जरूरी होता है। इसके बाद, हमें यह विश्लेषण करना होता है कि प्रत्येक कार्य को कितने समय में पूरा किया जा सकता है और इसके लिए कितने संसाधन आवश्यक हैं। गणना में हमें यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी कार्य अपनी समय सीमा से अधिक समय न ले और लागत अधिक न हो।

Concept of Least Cost Duration in Hindi

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन (Least Cost Duration) एक ऐसा विचार है जो प्रोजेक्ट प्रबंधन में समय और लागत के संतुलन को सही तरीके से निर्धारित करने में मदद करता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रोजेक्ट को निर्धारित समय के भीतर और न्यूनतम लागत में पूरा किया जा सके। जब हम किसी कार्य की समय सीमा को घटाते हैं तो इसके साथ लागत भी बढ़ सकती है, और यह अवधारणा हमें यह सिखाती है कि कौन सा तरीका सबसे अच्छा है, जिससे समय को भी नियंत्रित किया जा सके और लागत भी कम रखी जा सके।

What is Least Cost Duration?

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन का मतलब है कि किसी प्रोजेक्ट को निर्धारित समय सीमा में और सबसे कम खर्च में पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त अवधि का चयन करना। इसमें हमें यह सुनिश्चित करना होता है कि प्रोजेक्ट के हर कार्य को सबसे प्रभावी तरीके से पूरा किया जा सके, ताकि न केवल समय की बचत हो, बल्कि लागत में भी कमी आए। इसका गणना करते समय यह महत्वपूर्ण होता है कि कौन से कार्य ज्यादा समय ले रहे हैं और कौन से कार्य अपनी निर्धारित समय सीमा से अधिक खर्च कर रहे हैं।

How Does Least Cost Duration Help in Project Management?

  • समय और लागत का संतुलन: जब हम लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन का पालन करते हैं, तो यह सुनिश्चित होता है कि प्रोजेक्ट को तय समय में और कम लागत पर पूरा किया जा सके। यह एक प्रकार से प्रोजेक्ट के संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करने का तरीका होता है।
  • संसाधनों का इष्टतम उपयोग: इस अवधारणा के माध्यम से हम यह समझ पाते हैं कि किसी कार्य के लिए कितना संसाधन आवश्यक है, जिससे हम समय और लागत दोनों को संतुलित कर सकें। यदि किसी कार्य के लिए अतिरिक्त संसाधन का उपयोग किया जाता है, तो वह प्रोजेक्ट की कुल लागत को बढ़ा सकता है।
  • समय की कमी को ध्यान में रखते हुए लागत पर नियंत्रण: लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन यह सुनिश्चित करता है कि यदि समय कम किया जाए तो इसके साथ ही लागत में वृद्धि को कम से कम किया जाए। यह प्रक्रिया प्रोजेक्ट प्रबंधक को यह समझने में मदद करती है कि किस प्रकार कार्यों को सही समय पर और कम खर्च में पूरा किया जा सकता है।

Key Factors in Least Cost Duration Calculation

  • कार्य की लागत: हर कार्य की लागत की सही पहचान करना आवश्यक है। जब समय को घटाया जाता है, तो प्रायः कार्य की लागत भी बढ़ जाती है।
  • कार्य की समय सीमा: प्रत्येक कार्य के लिए न्यूनतम और अधिकतम समय सीमा का निर्धारण करना होता है। इससे यह तय किया जा सकता है कि कार्य कितने समय में समाप्त होगा और इसकी लागत क्या होगी।
  • प्रोजेक्ट की कुल लागत: पूरे प्रोजेक्ट की लागत का सही मूल्यांकन करना जरूरी होता है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि किसी कार्य को जल्दी करने से पूरे प्रोजेक्ट की लागत पर क्या असर पड़ेगा।

Steps in Determining Least Cost Duration in Hindi

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन का निर्धारण एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है जो प्रोजेक्ट प्रबंधन में समय और लागत को नियंत्रित करने में मदद करती है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी प्रोजेक्ट को न्यूनतम लागत में निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा किया जा सके। आइए जानते हैं इस प्रक्रिया को सही तरीके से निर्धारित करने के लिए कौन-कौन से स्टेप्स होते हैं।

Step 1: समय और लागत का विश्लेषण करना

सबसे पहला कदम है, प्रोजेक्ट के हर कार्य की समय सीमा और लागत का गहन विश्लेषण करना। इसके लिए हमें यह पहचानना होता है कि कौन से कार्य ज्यादा समय ले रहे हैं और कौन से कार्य ज्यादा खर्चीले हैं। इस जानकारी को एकत्रित करने से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किस कार्य को तेज़ी से और कम लागत में पूरा किया जा सकता है।

Step 2: क्रिटिकल पाथ (Critical Path) का निर्धारण

अगला कदम है, क्रिटिकल पाथ का निर्धारण करना। क्रिटिकल पाथ वह कार्यों का समूह होता है जिनका समय पर पूरा होना जरूरी है, क्योंकि यदि इनमें से कोई कार्य देरी से होता है तो पूरे प्रोजेक्ट की समय सीमा प्रभावित हो सकती है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि किन कार्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि प्रोजेक्ट समय पर पूरा हो सके।

Step 3: संसाधनों का उचित वितरण

इस कदम में हमें प्रोजेक्ट के प्रत्येक कार्य के लिए संसाधनों का सही तरीके से वितरण करना होता है। जब हम कार्यों को समय पर और लागत में कमी के साथ पूरा करना चाहते हैं, तो संसाधनों का कुशल वितरण जरूरी होता है। इसमें श्रमिकों, सामग्री और अन्य संसाधनों का सही तरीके से प्रबंधन किया जाता है ताकि कार्य तेजी से और कम लागत में हो सके।

Step 4: समय में लचीलापन (Time Flexibility) का उपयोग करना

यहाँ हमें प्रोजेक्ट में उपलब्ध समय में लचीलापन (Time Flexibility) का सही तरीके से उपयोग करना होता है। कभी-कभी किसी कार्य को जल्दी किया जा सकता है जबकि कुछ कार्यों को थोड़ा समय दिया जा सकता है। यह लचीलापन हमें लागत को नियंत्रित करने और समय सीमा के भीतर कार्य को पूरा करने में मदद करता है।

Step 5: कार्यों की प्राथमिकता निर्धारित करना

इस चरण में, हमें प्रोजेक्ट के कार्यों की प्राथमिकता निर्धारित करनी होती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन से कार्य प्रोजेक्ट के अंतिम लक्ष्य को प्रभावित कर सकते हैं। जिन कार्यों की प्राथमिकता अधिक है, उन्हें पहले किया जाता है और बाकी कार्यों को बाद में रखा जाता है। इससे समय और लागत दोनों को नियंत्रित करना आसान होता है।

Step 6: परिणामों का मूल्यांकन और सुधार

अंतिम कदम है, परिणामों का मूल्यांकन करना। जब प्रोजेक्ट का कोई भाग पूरा होता है, तो हमें यह जांचना होता है कि समय और लागत दोनों का संतुलन सही है या नहीं। यदि कहीं सुधार की आवश्यकता होती है, तो उसे तुरंत लागू किया जाता है ताकि पूरे प्रोजेक्ट की लागत कम हो और समय पर पूरा हो सके।

Advantages of Determining Least Cost Duration in Hindi

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन का निर्धारण करने से प्रोजेक्ट प्रबंधन में कई फायदों का अनुभव होता है। यह प्रक्रिया न केवल प्रोजेक्ट को सही समय में पूरा करने में मदद करती है, बल्कि लागत को भी नियंत्रित करती है। आइए जानते हैं कि लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन का निर्धारण करने से हमें क्या लाभ मिलते हैं।

1. समय और लागत का बेहतर संतुलन

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन के निर्धारण से सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि प्रोजेक्ट का समय और लागत दोनों सही संतुलन में होते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि काम समय पर पूरा होगा, लेकिन इसके साथ-साथ लागत भी काबू में रहती है। सही समय पर कार्य पूरा करना और न्यूनतम लागत में इसे करना दोनों प्रोजेक्ट के लिए फायदेमंद होते हैं।

2. संसाधनों का इष्टतम उपयोग

जब हम लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन का निर्धारण करते हैं, तो यह सुनिश्चित होता है कि प्रोजेक्ट में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग सबसे अच्छे तरीके से किया जाए। इसका मतलब है कि कार्यों के लिए जितने संसाधन चाहिए, उतने ही सही तरीके से वितरित किए जाते हैं। इससे न केवल समय की बचत होती है, बल्कि लागत भी कम होती है।

3. कार्यों की प्राथमिकता का निर्धारण

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन के दौरान हमें यह समझ में आता है कि कौन से कार्य सबसे महत्वपूर्ण हैं और जिन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस तरह से हम उन कार्यों को पहले पूरा कर सकते हैं जो प्रोजेक्ट की सफलता में सबसे ज्यादा योगदान करते हैं, और कम महत्वपूर्ण कार्यों को बाद में पूरा किया जा सकता है। इससे प्रोजेक्ट की गति और सफलता दोनों सुनिश्चित होती हैं।

4. प्रोजेक्ट की समय सीमा में सुधार

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन का निर्धारण करने से प्रोजेक्ट की समय सीमा में सुधार हो सकता है। यदि समय को सही तरीके से घटाया जाता है और कार्यों की प्राथमिकता सही तरीके से तय की जाती है, तो प्रोजेक्ट अपने तय समय में पूरा हो सकता है। यह समय सीमा को नियंत्रित करने का एक बेहतरीन तरीका है, जो प्रोजेक्ट प्रबंधन के लिए लाभकारी है।

5. जोखिम का कम होना

जब हम समय और लागत दोनों को नियंत्रित करते हैं, तो प्रोजेक्ट के जोखिम को भी कम किया जा सकता है। लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन का निर्धारण यह सुनिश्चित करता है कि कार्य समय पर हो और संसाधनों का सही तरीके से उपयोग हो, जिससे किसी भी प्रकार के अप्रत्याशित खर्च या समय की देरी का जोखिम कम हो जाता है।

6. प्रोजेक्ट की कुल लागत में कमी

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन का निर्धारण करने से प्रोजेक्ट की कुल लागत पर भी नियंत्रण होता है। जैसे-जैसे हम कार्यों को समय पर और कम संसाधनों के साथ पूरा करते हैं, वैसे-वैसे प्रोजेक्ट की कुल लागत में भी कमी आती है। यह प्रोजेक्ट प्रबंधक के लिए एक लाभकारी स्थिति होती है क्योंकि इससे प्रोजेक्ट के बजट का पालन करना आसान होता है।

Calculating the Least Cost Duration in Hindi

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन की गणना करना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो प्रोजेक्ट की लागत और समय को नियंत्रण में रखने में मदद करती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि किसी कार्य को न्यूनतम लागत में और अधिकतम दक्षता के साथ पूरा किया जा सके। अब हम जानते हैं कि इसे सही तरीके से कैसे गणना किया जाता है।

1. सभी कार्यों का समय और लागत ज्ञात करें

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन की गणना करने के पहले, हमें प्रोजेक्ट के सभी कार्यों का समय और लागत पता होना चाहिए। यह सबसे पहली और महत्वपूर्ण जानकारी है, क्योंकि बिना इन आंकड़ों के हम यह नहीं समझ सकते कि कौन सा कार्य कितना समय लेगा और उसकी लागत कितनी होगी। इससे हमें यह पता चलता है कि हम किस कार्य को तेज़ी से और कम लागत में कर सकते हैं।

2. क्रिटिकल पाथ (Critical Path) का निर्धारण करें

क्रिटिकल पाथ वह कार्यों का समूह होता है जिनके समय पर पूरा होने से पूरे प्रोजेक्ट की समय सीमा प्रभावित होती है। इन कार्यों को सही समय पर और कुशलता से पूरा करना अत्यंत आवश्यक है। जब हम क्रिटिकल पाथ का सही निर्धारण करते हैं, तो हम यह तय कर सकते हैं कि कौन से कार्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि समय की बचत हो सके और प्रोजेक्ट के अन्य कार्यों पर प्रभाव न पड़े।

3. संसाधनों का उचित वितरण करें

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन की गणना करते वक्त यह जरूरी है कि हम उपलब्ध संसाधनों का उचित वितरण करें। हमें यह सुनिश्चित करना होता है कि प्रत्येक कार्य के लिए जितना आवश्यक संसाधन है, उसे सही समय पर और सही तरीके से आवंटित किया जाए। यह संसाधनों के अभाव को रोकता है और कार्यों को निर्धारित समय में पूरा करने में मदद करता है।

4. समय और लागत के बीच संतुलन बनाए रखें

इस चरण में हमें समय और लागत दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता होती है। कभी-कभी हमें यह निर्णय लेना पड़ता है कि किसी कार्य को समय में तेजी से पूरा करना है, जबकि कुछ कार्यों के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता हो सकती है। हमें यह सुनिश्चित करना होता है कि इन दोनों के बीच सही संतुलन बना रहे, ताकि कुल लागत कम हो और कार्य समय पर पूरे हों।

5. परिणामों का मूल्यांकन और सुधार करें

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन की गणना करने के बाद, यह जरूरी है कि हम परिणामों का मूल्यांकन करें। यदि कहीं पर सुधार की आवश्यकता महसूस होती है, तो उसे तुरंत लागू किया जाए। यह कदम हमें यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि कोई भी कार्य निर्धारित समय से अधिक न ले और लागत में भी कोई अप्रत्याशित वृद्धि न हो। इसके लिए हमें लगातार निगरानी और मूल्यांकन करना होता है।

6. लचीलापन (Flexibility) का सही उपयोग करें

कभी-कभी प्रोजेक्ट में कुछ कार्यों को अधिक समय की आवश्यकता हो सकती है और कुछ कार्य कम समय में पूरे हो सकते हैं। ऐसे में हमें लचीलापन (Flexibility) का उपयोग करना पड़ता है। यह लचीलापन हमें प्रोजेक्ट के समय और लागत को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे हम डेडलाइन से पहले कार्यों को पूरा कर सकते हैं और लागत को भी कम कर सकते हैं।

7. डेटा और फीडबैक का उपयोग करें

लेस्ट कॉस्ट ड्यूरेशन की गणना में डेटा और फीडबैक का बहुत बड़ा योगदान होता है। हमें प्रोजेक्ट के दौरान एकत्रित डेटा और फीडबैक का सही तरीके से उपयोग करना होता है, ताकि हम किसी भी असमंजस की स्थिति से बच सकें। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि किस कार्य में अधिक समय लग रहा है और कहां हम समय और लागत की बचत कर सकते हैं।

FAQs

Least Cost Duration वह समय है जिसमें कोई प्रोजेक्ट न्यूनतम लागत में पूरा किया जा सकता है। इसका उद्देश्य प्रोजेक्ट के कार्यों को समय के अनुसार व्यवस्थित करना और संसाधनों का उपयोग इस तरह से करना है कि लागत कम से कम हो। यह एक प्रबंधन प्रक्रिया है जो समय और लागत को सही तरीके से संतुलित करने में मदद करती है।
Least Cost Duration प्रोजेक्ट के खर्चों को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी कार्य कम समय और कम लागत में किए जाएं, जिससे कुल बजट और समय सीमा को बचाया जा सके। इससे प्रोजेक्ट की सफलता की संभावना बढ़ती है और इसका समग्र कार्य प्रदर्शन बेहतर होता है।
Least Cost Duration निर्धारित करने का पहला कदम यह है कि हमें सभी कार्यों का समय और लागत ज्ञात करना होता है। यह सबसे अहम जानकारी है क्योंकि इसके बिना हम यह नहीं समझ सकते कि कार्यों को कितने समय में पूरा किया जा सकता है और लागत कितनी होगी। इस डेटा को इकट्ठा करके हम आगे की योजना बना सकते हैं।
Critical Path वह कार्यों की श्रृंखला है, जिनका समय पर पूरा होना प्रोजेक्ट की कुल समय सीमा पर प्रभाव डालता है। Critical Path का निर्धारण करने से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि कौन से कार्य प्राथमिकता में हैं और इन कार्यों को तेजी से कैसे पूरा किया जाए ताकि कुल लागत कम हो सके और समय भी बचाया जा सके।
Least Cost Duration की गणना में समय और लागत का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। कभी-कभी हमें यह निर्णय लेना पड़ता है कि किसी कार्य को तेजी से किया जाए या कुछ कार्यों के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता हो सकती है। इस संतुलन को सही तरीके से बनाए रखने के लिए, हमें संसाधनों का सही तरीके से वितरण और उचित योजना बनानी होती है।
Least Cost Duration की गणना करने से प्रोजेक्ट की कुल लागत कम होती है और समय की बचत होती है। यह हमें सही समय पर सही कार्य करने की योजना बनाने में मदद करता है, जिससे प्रोजेक्ट के समय और बजट को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, यह प्रोजेक्ट की सफलता दर को बढ़ाता है और समग्र कार्यप्रणाली को बेहतर बनाता है।

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